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बहुत-से लोग यहाँ-वहाँ सिर लटकाए बैठे थे जैसे किसी का मातम करने आए हों। कुछ लोग अपनी पोटलियाँ खोलकर खाना खा रहे थे। दो-एक व्यक्ति पगड़ियाँ सिर के नीचे रखकर कम्पाउंड के बाहर सड़क के किनारे बिखर गए थे। छोले-कुलचे वाले का रोज़गार गर्म था, और कमेटी के नल मोहन राकेश
Mummy ke mu se ye shabd sunkar most important pagal ho gaya aur maine fir se unke honthon ko kiss karne laga…. Mummy ki aankhon me dher saari hawas thi. Unhone apne pairon se mujh kas ke pakda aur mujhe kiss karne lagi…..
केवल पांडे आधी नदी पार कर चुके थे। घाट के ऊपर के पाट मे अब, उतरते चातुर्मास में, सिर्फ़ घुटनों तक पानी है, हालाँकि फिर भी अच्छा-ख़ासा वेग है धारा में। एकाएक ही मन मे आया कि संध्याकाल के सूर्यदेवता को नमस्कार करें, किंतु जलांजलि छोड़ने के लिए पूर्वाभिमुख शैलेश मटियानी
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लेकिन साथ ही, राजेश को अपने पिता की नाई की दुकान भी विरासत में मिली थी, और उसने जल्द ही गाँव में सबसे अच्छे नाई के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली थी। लोग मीलों दूर से राजेश से अपने बाल कटवाने आते थे, जिनके पास अपनी तेज धार वाली कैंची से जटिल डिजाइन और पैटर्न बनाने की प्रतिभा थी।
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पहले तो लड़का फर्श पर पड़ी बुढ़िया को देखकर डर गया। लेकिन जैसे ही वह करीब आया, उसने देखा कि वह अभी here भी सांस ले रही थी। वह मदद पाने के लिए वापस गाँव की ओर भागा, और जल्द ही ग्रामीणों का एक समूह यह देखने के लिए आया कि क्या हुआ था।
मैंने अपने जन्म के कुछ साल बाद अपनी माँ को खो दिया था. जिस वजह से मेरी परवरिश के लिए मेरे … पूरी कहानी पढ़ें
सुखदेव ने ज़ोर से चिल्ला कर पूछा—“मेरा साबुन कहाँ है?” श्यामा दूसरे कमरे में थी। साबुनदानी हाथ में लिए लपकी आई, और देवर के पास खड़ी हो कर हौले से बोली—“यह लो।” सुखदेव ने एक बार अँगुली से साबुन को छू कर देखा, और भँवें चढ़ा कर पूछा—“तुमने लगाया था, द्विजेंद्रनाथ मिश्र 'निर्गुण'
सवेरे का वक़्त है। गंगा-स्नान के प्रेमी अकेले और दुकेले चार-चार छ-छ के गुच्छों में गंगा-तट से लौटकर दशाश्वमेध के तरकारी वालों और मेवाफ़रोशों से उलझ रहे हैं, मोल-तोल कर रहे हैं। दुकानें सब दुलहिनों की तरह सजी-बजी खड़ी हैं। कहीं चायवाला चाय के शौक़ीनों अमृत राय